Ayodhya के पावन धाम में, जहां भगवान राम का जन्म हुआ, वहां अब एक ऐतिहासिक पल देखने को मिल रहा है। रामलला की मूर्ति चयन की प्रक्रिया पूर्ण हो चुकी है। यह प्रक्रिया केवल एक मूर्ति चयन से कहीं अधिक है, यह भक्ति, कला और परंपरा के अद्भुत संगम की कहानी है।
राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने पूरी पारदर्शिता और विधिवत तरीके से तीन प्रतिमाओं में से सर्वश्रेष्ठ का चयन किया है। 51 इंच ऊँची यह मूर्ति रामलला की बाल लीलाओं को मूर्त रूप देगी। ट्रस्ट के सदस्यों ने सर्वसम्मति से इस मनमोहक प्रतिमा को चुना है, जिसमें दिव्यता और बाल सुलभता का अद्भुत संतुलन है।
मूर्ति चयन की प्रक्रिया अपने आप में ही दिव्य अनुभव से कम नहीं थी। ट्रस्टी बिमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्रा के शब्दों में, “जिस मूर्ति को देखते ही आँखें थम जाती हैं, उसी में भगवान का वास माना जाता है।” इस प्रक्रिया में हर सदस्य ने अपनी पसंद प्रकट की और सर्वश्रेष्ठ का चयन किया गया। यह चयन केवल कलात्मक सौंदर्य पर आधारित नहीं था, बल्कि उस आध्यात्मिक अनुभूति पर भी, जो उस मूर्ति के दर्शन से होती है।
रामलला की मूर्ति सिर्फ एक पत्थर की प्रतिमा नहीं है, बल्कि करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। यह सदियों के संघर्ष, धैर्य और भक्ति का प्रतीक है। इस मूर्ति में Ayodhya का इतिहास, राम भक्तों की अनंत धारा और भारत की सांस्कृतिक जड़ें समाहित हैं।
आगामी जनवरी में मूर्ति स्थापना का पवित्र अनुष्ठान होगा। सात दिनों तक चलने वाले इस समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित देश-विदेश से गणमान्य लोग शामिल होंगे। 22 जनवरी को मृगशिरा नक्षत्र में रामलला को गर्भगृह में विराजमान किया जाएगा।
इस ऐतिहासिक क्षण के साथ ही Ayodhya में एक नए युग का प्रारंभ होगा। राम मंदिर का निर्माण न केवल एक भव्य भवन का निर्माण है, बल्कि राष्ट्रनिर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह आस्था, एकता और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक है।
रामलला की मूर्ति चयन की प्रक्रिया हमें याद दिलाती है कि कला और परंपरा धर्म को किस खूबसूरती से जीवंत करती हैं। यह हमें भक्ति का मार्ग दिखाती है और राष्ट्रीय गौरव को जगाती है। यह राम के संदेश को आगे बढ़ाने की प्रेरणा देती है, जहां प्रेम, सत्य और न्याय का सर्वोच्च स्थान है।
आइए, हम सब मिलकर इस पवित्र अवसर का स्वागत करें और रामलला की कृपा से देश की प्रगति और समृद्धि की कामना करें।