राजस्थान शिक्षा मंडल ने अपनी कक्षा दसवीं के इतिहास पाठ्यक्रम में संशोधन करने की मंजूरी दी है ताकि छात्रों को सिखाया जा सके कि मेवाड़ के राणा, Maharana Pratap ने 16वीं सदी के हल्दीघाटी के युद्ध में मुघल सम्राट Akbar को परास्त किया। इस नए दृष्टिकोण से लेकर हम देखेंगे कैसे राजस्थान के शिक्षा मंडल ने अपनी कक्षा दसवीं के इतिहास पाठ्यक्रम को संशोधित किया है और इसमें हुए बदलाव के साथ राजस्थान का इतिहास नए पैग पर कैसे लिखा जा रहा है।
हल्दीघाटी के युद्ध में Maharana Pratap की विजय:
राजस्थान शिक्षा मंडल ने अपने कक्षा दसवीं के सामाजिक विज्ञान पुस्तकों के इतिहास खंड में एक संशोधन को मंजूरी दी है, जिससे छात्रों को यह सिखाया जाएगा कि Maharana Pratap ने 16वीं सदी के हल्दीघाटी के युद्ध में मुघल सम्राट Akbar को सशक्त प्रतिरोध करके अपनी मातृभूमि मेवाड़ की रक्षा की। इसमें कहा गया है कि हल्दीघाटी की लड़ाई ने समाप्त नहीं हुई थी, बल्कि Maharana Pratap ने अपनी सेना के साथ साहसी युद्ध किया और Akbar की सेना को मैदान से पलटा दिया।
सोशल साइंस पाठ्यक्रम में संशोधन का स्वीकृति:
राजस्थान के प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के राज्यमंत्री वासुदेव देवनानी ने स्पष्ट किया कि इस परिवर्तन की मंजूरी के साथ, राजस्थान के स्कूलों में अब तक शिक्षित इतिहास गलत था और इस परिवर्तन से इस असहमति को दूर कर दिया गया है। उन्होंने यह भी पूछा कि अगर Akbar ने मूल युद्ध में विजय प्राप्त की थी तो उसने हल्दीघाटी के युद्ध के बाद राणा प्रताप की सेना पर छ: सदस्यीय हमले क्यों किए? वह हर बार Maharana Pratap से हारता रहा क्योंकि उसकी सेना को उससे हार मिलती रही।
राजस्थान के साक्षरता:
राजस्थान की भाजपा सरकार ने जब अपने काबू में आई थी, तब उसने आदेश दिया था कि पाठ्यक्रम से ‘Akbar महान’ शीर्षक की एक अध्याय को हटा दिया जाए। शिक्षा मंत्री ने उस समय पूछा था कि स्कूल की इतिहास पुस्तकों में ऐसा एक अध्याय क्यों होना चाहिए, जिसमें पूछा जाए कि Akbar महान क्यों था? और Maharana Pratap क्यों नहीं?
युद्ध का सिद्धांत:
इसके बाद, उदयपुर के सरकारी मीरा कन्या महाविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. चंद्रशेखर शर्मा ने एक खोज का प्रकाशन किया, जिसमें उन्होंने यह तर्क दिया कि राजपूत ने हल्दीघाटी के युद्ध में सशक्त रूप से जीत हासिल की थी। डॉ. शर्मा ने अपनी खोज को 16वीं सदी के भूमि रेकॉर्ड्स पर आधारित किया और बताया कि 1576 के जून 18 के युद्ध के बाद एक साल तक Maharana Pratap ने हल्दीघाटी के नजदीकी गाँवों में जमीन बांटी और उसने उसे एकलिंगनाथ के दीवान के हस्ताक्षर के साथ लिखे कांपर प्लेट्स पर बांटा।
इतिहास का सच:
उनका तर्क यह था कि उस समय, केवल प्रांत के राजा को भूमि का वितरण करने की अनुमति थी और इसलिए इससे सिद्ध होता है कि Maharana Pratap हल्दीघाटी के युद्ध के विजेता थे। इस संशोधन के साथ हम देख सकते हैं कि राजस्थान के शिक्षा मंडल ने कैसे अपने इतिहास पाठ्यक्रम को नए और विशेष दृष्टिकोण से सजाया है और यह बदलाव छात्रों को राजस्थान के Maharana Pratap की शौर्य गाथा से परिचित कराएगा।
इस सबसे साफ है कि राजस्थान ने अपने इतिहास में एक नया पन्ना खोला है और Maharana Pratap की शौर्यगाथा को और भी उजागर किया है। इसके साथ ही, यह बदलाव छात्रों को सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी राजस्थान के इतिहास को समझने का नया दृष्टिकोण प्रदान करेगा। यह नया प्रेरणा स्रोत बनकर आगे बढ़ेगा, और राजस्थान के छात्रों को अपने इतिहास के प्रेम में और भी गहराईयों तक जाने का एक शानदार अवसर प्रदान करेगा।